पौराणिक चरित्रों पर आधारित साझा संकलन ‘कालजयी’ जल्द होगी रिलीज

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पौराणिक चरित्रों पर आधारित साझा संकलन 'कालजयी' जल्द होगी रिलीज

आपने अब तक कई कविता, कहानी और लघुकथा के साझा संकलनों में प्रतिभाग किया होगा या उन्हें पढ़ा होगा। अक्सर अधिकतर संपादक काव्य संग्रह या कहानी संग्रह प्रकाशित करते है। हमने भी कई साझा संग्रहों की सूचनाएं प्रकाशित की है। आपने पौराणिक चरित्रों पर काफी उपन्यास भी पढ़े होंगे, जिन्हें काफी सफलता भी प्राप्त हुई है।

अब हम आपको सीधे मुद्दे पर ले जाते हुए बताते हैं कि जल्द ही आपको एक ऐसे साझा संकलन को पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा, जिसका विषय सबसे अलग है और जो पौराणिक चरित्रों पर आधारित है। जिसमें सबसे अच्छी बात यह है कि आप एक ही संकलन में कई पौराणित चरित्रों को नये रंगरूप में पढ़ेंगें, जिनको कई लेखकों द्वारा लिखा गया है। जल्द ही प्रकाशित होने वाले इस संकलन का नाम ‘कालजयी’ है और इसका संपादन कानपुर निवासी श्रीमती संगीता राजपूत ‘श्यामा’ जी कर रहीं है। संगीता जी के अनुसार पिछले काफी समय से संगीता जी कुछ नया करना चाहतीं थी, जो अन्य संपादकों की कार्यों व संग्रहों से अलग हो। संगीता जी ने सोचा क्यों न अपने हिन्दू शास्त्र के पौराणिक चरित्रों पर ही कुछ नया लिखा जाए और काफी लम्बे समय के होमवर्क के बाद ‘कालजयी’ की विचारधारा को स्थापित किया और कई लेखकों के सामने ‘कालजयी’ का प्रस्ताव रखा। जिसमें कई लेखकों का सहयोगी रचनाकार के रूप में सहर्ष समर्थन मिला। संगीता जी के अथक मेहनत और प्रयासों के बाद ‘कालजयी’ पुस्तक के रूप में जल्द ही अमेजन और फ्लिपकार्ट पर खरीदने के लिए प्राप्त होगी।

‘कालजयी’ में नीलम डिमरी (भरत व मांडवी), अरूणा पाण्डे (कौशल्या व विभीषण, दशरथ व परशुराम), श्वेतप्रदा दाश (शांता व ऋष्यश्रंग), रत्ना ओझा (हनुमान), महेश किशोर शर्मा (लक्ष्मण व उर्मिला), लक्ष्मी शर्मा (कैकेयी), डॉ. मीनू पांडेय नयन (मंदोदरी), कुंदन कुमार (मेघनाथ, अंगद, वशिष्ठ व सुग्रीव), मंजुला (राम और अनुसुईया), सुभाष चंद्र नौटियाल (कुंभकर्ण व जटायु), ऋतु असूजा (रावण व जनक), वंदना गुप्ता (शूपर्णखा व शबरी), लवनीता मिश्रा (वाल्मिकी व ऋषि विश्रवा), गीतांजलि (सीता व अहिल्या) द्वारा रचित प्रमुख पौराणिक चरित्रों को पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा।

पौराणिक चरित्रों पर आधारित साझा संकलन 'कालजयी' जल्द होगी रिलीज
कानपुर से संगीता राजपूत जी का चित्र।

Buuks2Read की टीम ने संगीता जी से जानकारी प्राप्त की, आईये उनके शब्दों में जानते हैं, उनकी जल्द आने वाली पुस्तक ‘कालजयी’ के बारे में-

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।

महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित श्लोक महाकाव्य रामायण का आधार बना। महर्षि वाल्मीकि जी ने वाल्मिकी रामायण की रचना संस्कृत में की थी। समय बीतता गया और संस्कृत का स्थान हिन्दी ने ले लिया। एक हजार साल से आक्रांताओं ने हमारे देश की संस्कृति व सभ्यता को बहुत हानि पहुंचाई।

पुस्तकें हमारी संस्कृति व सभ्यता को एक पीढी से दूसरी पीढी तक पहुंचाने का कार्य करती है। सदियों से बहुत सी सभ्यता बनी और बिगड़ी लेकिन पुस्तक में लिखे शब्दो के माध्यम से वह सदैव जीवित रहती है। परन्तु जब किसी देश की पुस्तकों पर आक्रमण होता है तब देश के नागरिक अपने इतिहास को भूलने लगते हैं और यही हुआ हमारे देश भारत के साथ।

खिलजी ने नालंदा की महान पुस्तकालय में आग लगा दी और लगभग 9 अरब पांडुलिपियों को जला दिया। ऐसा कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि वह तीन महीने तक जलती रहीं। इसके बाद खिलजी के आदेश पर तुर्की आक्रमणकारियों ने नालंदा के हजारों धार्मिक विद्वानों और भिक्षुओं की भी हत्या कर दी।

जब इतनी बड़ी संख्या में पुस्तकें नष्ट हुई तो अब हमे यह सटीक रूप से ज्ञात नहीं की उस समय क्या हुआ होगा और फिर लेखको ने अपनी कल्पना व थोड़ी जानकारी के आधार पर अपनी मति के अनुसार पुस्तकें लिखना आरंभ किया क्योकि हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत है इसलिए सभी वेद ग्रंथ आदि संस्कृत में लिखे गये, कुछ लोगो ने संस्कृत शब्दो को गलत तरीके से समझा और लिखा।

रामायण के पात्रों को मैं भी वैसे ही समझती थी जैसा कि अन्य लोग समझते हैं लेकिन जैसे ही आप तथ्यों को समझना आरंभ करते हैं तब आपको अनुभव होता है कि वाल्मिकी रामायण के बहुत से श्लोकों का सटीक अर्थ नहीं निकाला गया। जिससे समाज में कुछ भ्रांति उत्पन्न हुई। उदाहरण के लिए सीता जी को बहुत सी पुस्तकों में एक अबला के रूप में वर्णित किया जाता है जबकि वह रामायण का एक सशक्त पात्र हैं।

बाल्यकाल में ही शिव धनुष को सरकाने वाली और विवाह के उपरांत पति के साथ वनवास पर जाने वाली सीता जी आपको कहाँ से असहाय दिखती है? वनवास राम जी को मिला था सीता जी को नहीं, अशोक वाटिका में इतना समय रहने पर भी रावण सीता जी को छू भी ना सका क्योकि वह उनके तेज से भयभीत था, ना कि किसी घास के तिनके ने सीता जी की रक्षा की।

रामायण पर अभी भी बहुत से शोध की आवश्यकता है जो संस्कृत के अर्थ को भलीभांति समझ कर रामायण के साथ सही न्याय कर सकें। इसी विचार ने मुझे कालजयी पुस्तक का संपादन करने की प्रेरणा दी। कई गुणी रचनाकारों ने कालजयी में रामायण के पात्रों को अपने शब्दो में लिखा है।

कालजयी अर्थात शाश्वत, काल को जीतने वाला।

रामायण के कुछ कालजयी चरित्र को आप मेरे द्वारा संपादित पुस्तक कालजयी में पढेंगे।

“क्योकि अच्छी पुस्तकें पढेंगे
तभी भविष्य को गढेगे”

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