About the Book
लेखक के शब्दों में-
ये प्यारी कविता उस “परी” के लिए जो हमेशा मेरे पास रहेगी…और उन सभी के लिए भी जो एक दूसरे से जुड़े हैं बंधे है और उन्हें कभी खोना नहीं चाहते…
About the Author
थोड़ा पागल हूँ, नासमझ भी, नादान भी हूँ पर नादानी नहीं करता, बदमाशियों ने तो आज इतना बड़ा किया है “मुश्किलें जो है ना ऑटो और रिक्शा की तरह आती जाती है…” पर अपने साथ कुछ यादें छोड़ जाती है। बस! अब अपने बारे में क्या बोलू, जैसा भी हूँ पन्नो में हूँ, शब्दें बिखरी पड़ी है उसे ही बटोरने में लगा हूँ…